बबूल के पेड़ के बारे में हम पहले भी बात कर चुके हैं।यह पेड़ भारत में मुख्य रूप से राजस्थान,पंजाब,गुजरात,हरियाणा,मध्यप्रदेश और उतरप्रदेश के सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है।
बबूल का पुराना वैज्ञानिक नाम(Acacia nilotica) है।जो की अब बदल कर(Vachellia nilotica) कर दिया गया है।
दरअसल Acacia नाम आस्ट्रेलियाई बबूल के पेड़ों के लिए संरक्षित किया गया है। उसके अलावा एशिया में पाई जाने वाली प्रजातियों के लिए Vachellia nilotica नाम अलग रखा गया है।
ये पेड़ गर्म और शुष्क इलाकों,कम पानी की मांग करने वाला,लू के थपेड़े भी जिसे परेशान न कर सके,खुदसे अपना जीवन चलाने वाला सहनशील वृक्ष है।रेगिस्तान के तपते धोरों में मिट्टी का रक्षक है ये पेड़।

बबूल का पेड़ किस देवता से जुड़ा है?धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
बबूल के पेड़ को भारत में औषधीय वृक्षों की श्रेणी में रखा जाता है,और चिकित्सा से सम्बन्धित पुस्तकों में बहुत लाभकारी पेड़ है।ये ही नहीं भारतीय परम्परा में वृक्षों का आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
हमारे देश के महान पुरुषों ने पेड़ो के नीचे बैठ कर तपस्या की और बुद्ध बने,और इसीलिए वृक्षों को धार्मिक भावनाओं से भी जोड़ा गया।ताकि सामान्य व्यक्ति भी पेड़ो से जुड़ाव और उनकी महत्ता समझ सके।
बबूल के पेड़ को भगवान विष्णु से जोड़ कर देखा जाता है।और ज्योतिष शास्त्र में पीले रंग को और पीले पुष्पों वाले वृक्षों को गुरु ग्रह से सम्बंधित बताया जाता है।
इसिलिए गुरु ग्रह से सम्बंधित समस्याओं से निजात पाने के लिए ज्योतिष के अनुसार बबूल के पेड़ को सींचना अत्यंत लाभकारी माना गया है।
विशेषकर रविवार के दिन बबूल में दूध चढ़ाने से धन से सम्बंधित समस्याओं में राहत और निराकरण मिलता है।ऐसा माना जाता है।
बबूल के वृक्ष में जल अर्पित करने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।ऐसा ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है।खासकर रविवार और गुरुवार के दिन।
बबूल सिर्फ भारतीय परम्पराओं में ही उपयोगी नहीं है।बल्कि कई विदेशी संस्कृतियों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।
मिस्र में ओरेसिस जो की जन्म और मृत्यु के देवता माने जाते हैं।उनका जन्म पवित्र बबूल के पेड़ से हुआ बताया जाता है।
मिस्र में धार्मिक कार्यों में और ताबूत निर्माण में बबूल की लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। और ममी बनाने के लिए गम अरेबिक(बबूल के गोंद)का उपयोग किया जाता था।
यहूदी परम्परा के अनुसार उनके पारम्परिक किताबों में बबूल का उल्लेख मिलता है।जिसमे से ज्यूइश एन्साईक्लोपीडिया में बबूल को पवित्र और धार्मिक महत्त्व की लकड़ी बताया गया है।
यहूदी धर्म के ओल्ड टेस्टामेंट में ईश्वर ने मूसा को आदेश दिया था,कि उनके लिए लकड़ी के पवित्र संदूक बबूल की लकड़ी से बनाये जाए।
कुछ स्त्रोतों के अनुसार जिस सूली पर इसा मसीह को लटकाया गया वह बबूल की लकड़ी से ही बनी थी।
अफ्रीका की आदिवासी जनजातियाँ बबूल की लकड़ी को बुरे और नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए विश्वसनीय मानती हैं। खेतों और घरों के आस पास वे बबूल की लकड़ी की बाढ़ बना कर खुद को नकारात्मक उर्जाओं से दूर रखते हैं।
इस प्रकार न सिर्फ भारत बल्कि विदेशी मान्यताओं में भी बबूल के वृक्ष को जीवन प्रदान करने वाला और रक्षा करने वाला पेड़ बतलाया गया है।

सांस्कृतिक और लोक परम्पराओं में बबूल
लोक मान्यताओं और वास्तु के अनुसार घर के आंगन और मुख्य द्वार के आगे कांटेदार वृक्षों को लगाना वर्जित है। क्यों कि बबूल के वृक्ष में कांटे पाए जाते हैं।तो यह माना जाता है,यह परिवार के सदस्यों के बीच समरसता को कम करते हैं,और कठोरता को बढ़ाते हैं।
लेकिन हाँ,गांवों में खेत की बाढ़ और घर से कुछ दूरी पर यह पेड़ लगाया जाता है।यह नकारात्मकता और बुरी शक्तियों से रक्षा का प्रतीक है। इसकी पत्तियाँ पशुओं के चारे के लिए लाभदायक है।और खेतों की बाढ़ पर इस पेड़ को लगाने से इस पर बया जैसे पक्षी भी घोसला बनाते हैं।जो फसलों की कीटों से रक्षा करते हैं।
निष्कर्ष
बबूल का पेड़ सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी सकारात्मक उर्जाओं को प्रदान करने और आरोग्य को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।जहाँ भारत में इस पेड़ में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।वही मिस्र और यहूदी परमपराओं में भी इस पेड़ को अमरत्व और पवित्रता से जोड़ कर देखा जाता है।अपने कंटीले रूप के कारण अब शहरी क्षेत्रों में यह पेड़ लुप्त होता जा रहा है।आवश्यकता है,पेड़ो के प्राकृतिक गुणों को जानने की और उन्हें संरक्षित करने की!क्या अपने बबूल से दन्तमंजन किया है कभी?बताइएगा।पोस्ट अच्छी लगी तो प्रकृति प्रेमियों से साझा कीजिए
सामन्यतया पूछे जाने वाले प्रश्न
बबूल का धार्मिक महत्व क्या है?
बबूल के पेड़ को नकारात्मक उर्जाओं से रक्षा करने और पवित्र वृक्ष के रूप में जाना जाता है, यह न सिर्फ औषधीय बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण वृक्ष है
बबूल वृक्ष की पूजा कैसे की जाती है?
रविवार के दिन बबूल के पेड़ की पूजा करने का विधान है,मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बबूल में जल,दूध,अक्षत और फूल अर्पित किए जाते हैं
क्या बबूल पेड़ लगाने से वास्तु दोष दूर होता है?
घर के अन्दर नहीं,लेकिन घर के बाहर कुछ दूरी पर और खेतों की बाढ़ों,ग्राम की सीमाओं पर इस पेड़ को लगाना बुरी शक्तियों से रक्षा करने वाला माना जाता है
क्या बबूल के औषधीय लाभ भी हैं?
हाँ,बबूल की छाल,पत्तियों और फलियों में दांतों को साफ रखने,घाव को भरने,तथा त्वचा से सम्बंधित रोगों मे उपचार के लिए सहायक हैं यह आरोग्य को प्रदान करने वाला वृक्ष है
सन्दर्भ
बबूल का पेड़ https://hiwiki.iiit.ac.in/index.php/%E0%A4%AC%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%B2
