Babool ka ped:Parichay,labh or videshi babool se antar par vistrat jankari

आज हम बात करेंगे एक ऐसे वृक्ष की जो न सिर्फ हमारी धरा पर उपस्थित है, बल्कि हमारे रोजमर्रा की भाषा और दोहों में भी प्रचलित है। “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय”, आम तो आपको मीठे फल देता है, शायद इसलिए उसकी महत्ता भी अधिक है परंतु Babool भी अपने आप में कुछ विशिष्टताओं को समेटे हुए है। इसके कांटों से डरे बिना इसके नजदीक जाकर ही समझते हैं कि बबूल में ऐसा खास क्या है।बबूल का एक दूसरा नाम कीकर भी है।बबूल मूलतया राजस्थान के शुष्क इलाकों में पाया जाने वाला वृक्ष है । 

बिना नखरो वाला और बिना देखभाल के युवा हो जाने वाला यह वृक्ष जिसका नाम है कीकर। राजस्थान की शुष्क हवाओं को झेल कर भी आमजन,पशुओं और पक्षियों को अपनी छांव में राहत और  आश्रय देता है Babool ka ped।इस वृक्ष की फलियां छाल और लकड़ी सभी का उपयोग ग्रामीण वासी अपने स्वास्थ्य वर्धन और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते है।

Babool ke ped ka parichay

Babool ka ped जिसका वानस्पतिक और वैज्ञानिक नाम  Acacia Nilotica है। यह वृक्ष भारत का मूल निवासी है।और अफ्रीका महाद्वीप में भी पाया जाता है। यह Fabaceae (फलीदार परिवार)का सदस्य है। क्योंकि इस वृक्ष पर भी अन्य फैबेसी परिवार के वृक्षों की तरह फलियां लगती है। बबूल के वृक्ष में लंबे-लंबे सफेद रंग के कांटे पाए जाते हैं ।शायद इसीलिए इस वृक्ष को संस्कृत में दीर्घकंटका कहते हैं। बबूल के वृक्ष में कांटे इसके पत्तियां की शुरुआत में दोनों और लगे होते हैं। तथा एक पूरी टहनी पर थोड़े-थोड़े अंतर से कई कांटे होते हैं। दूर से देखने पर यह एक सीढ़ी नुमा आकृति बने हुए से दिखते हैं। 

बबूल की पत्तियां मिश्रित रूप से दोनों और फैली रहती हैं। बबूल के वृक्ष में पीले रंग के फुंदेदार फूल लगते हैं। तथा इसकी फलियाँ 10 से 15 सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं, और देखने में माला जैसा आकार लिए हुए होते हैं।इसीलिए संस्कृत में इस वृक्ष को मालाफल भी कहा जाता है। बबूल का वृक्ष 5 से 20 मीटर तक ऊंचाई ग्रहण करता हैतथा 50 सेंटीग्रेड तक के तापमान को सहन करने की क्षमता रखता है।

राजस्थान के शुष्क इलाकों में Babool ka ped बहुतायत में पाया जाता है। बबूल के पेड़  से निकलने वाला गोंद भी स्वास्थ्य कारक माना जाता है। प्राचीन काल से ही भारतीय में गाँवो में बबूल से दंत मंजन करने की प्रथा रही है।निश्चित ही पुराने व्यक्तियों को प्राकृतिक संसाधनों से स्वास्थय को उत्तम बनाए रखने की विधा का ज्ञान था।आज के समय तो शायद बबूल एक कांटेदार वृक्ष लगे बस लोगों को।

Babool ke ped ke Anya nam

Babool ke ped को लैटिन में Acacia Nilotica नाम से जाना जाता है। इंग्लिश में इस वृक्ष को Acacia tree  और  Babul बुलाया जाता है। संस्कृत में इस वृक्ष को बर्बर,दीर्घकंटका और मालाफल के नाम से पुकारा जाता है। हिंदी में इस वृक्ष को बबूल और कीकर का नाम दिया गया है। तेलुगु में इस वृक्ष को बबुर्रम और  नवकदुग्गा कहा जाता है। तमिल में इसे कारूबेल के नाम से जाना जाता है,और मराठी में इस वृक्ष को बबूल या बाबूल के नाम से जाना जाता है। गुजराती में इस पेड़ को बाबल नाम दिया गया 

Babool ke jaise dikhane wala Anya ped

Babool ke ped  की पहचान को लेकर सभी में एक असमंजस की स्थिति बनी रहती है। क्योंकि बबूल की तरह ही दिखने वाला एक और वृक्ष जिसे अंग्रेजी बबूल या विलायती बबूल भी कहा जाता है, राजस्थान में अपनी बढ़त अरावली की पहाड़ियों में बना चुका है। जो की राजस्थान की अन्य वनस्पतियों के लिए एक चुनौती बन चुका है। इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम है Prosopis Juliflora, वैसे यह वृक्ष  ज्यादातर झाड़ीनुमा आकार में ज्यादा फैलता है।यह मेक्सिको और दक्षिणी अमेरिका का मूल निवासी है।

ऑस्ट्रेलिया में तो इस वृक्ष को खरपतवार की संज्ञा दी गई है। यह वृक्ष बहुत आक्रामक प्रवृत्ति की वनस्पति है, जहां भी यह अपना अस्तित्व बनाता है अन्य वानस्पतिक प्रजातियां, पक्षी  और जानवर संकट के घेरे में आ जाते हैं। पत्रिका समाचार पत्र में छपे एक लेख के अनुसार एक शोध से यह पता चला है, कि यह वृक्ष विकट परिस्थितियों में भी फलता फूलता है। इसकी जड़े मिट्टी में बहुत गहराई तक जाती हैं। जिन्हें उखाड़ना बहुत मुश्किल है।

इसी कारण यह वृक्ष फिर से हरा भरा हो जाता है। यह वृक्ष लोरा एलीलोपैथिक सब्सटेंस नमक विषैला पदार्थ छोड़ता है, इस कारण इसके समीप अन्य कोई वनस्पति नहीं पनप सकती। यह पौधा एक किलोमीटर के दायरे में मिट्टी की नमी को सोख लेने की क्षमता रखता है।इसी कारण यह एक विदेशी आक्रांता कहलाता है।

Babool ka pedal
shushk pradesho me falta fulta Babool anek aoushdhiya guno ko smete hue hai,

Bharat me videshi babool kab or kaise aya?

Prosopis Juliflora या अंग्रेजी Babool एक विदेशी नस्ल का पौधा है।मारवाड़ के तत्कालीन महाराजा हनुमंत सिंह जी के शासन में पूरे मारवाड़ में 1984 में हेलीकॉप्टर से इस प्रजाति के बीच फैलाए गए थे।

ताकि अकल से पीड़ित आमजन के लिए ईंधन की लकड़ी और रोजगार की उपलब्धता बढ़ाई जा सके। पूर्व में रेगिस्तान के प्रसार और अरावली को हरा-भरा करने की मंशा से बिखरे गए इसके बीच अब वन विभाग के लिए सर दर्द का कारण बन गए हैं।

9 khas antar Desi babool or vilayti babool me

( Acasia Nilotica )देसी बबूल और विलायती बबूल( Prosopis Juliflora) में अनेक अंतर है। दोनों वृक्षों  के गुणों  और पारिस्थिकी पर प्रभाव को लेकर उनकी उपयोगिता में भिन्नता पाई जाती है। तुलना निम्न प्रकार से है।

  • Mul nivas

देसी Babool ka ped  भारत का मूल वृक्ष है। जबकि विलायती बबूल मेक्सिको और दक्षिणी अमेरिका का निवासी है।

  • Sthaniya nam

देसी Babool ke ped को स्थानीय भाषा में कीकर और बबूल कहते हैं। जबकि Prosopis Juliflora  को विलायती बबूल या अंग्रेजी बबूल कहा जाता है।

  • Pattiyan

देसी Babool की पत्तियां हरी, घनी और छोटी होती है। जबकि विलायती बबूल की पत्तियां गहरी हरी, छोटी और कम घनी होती है।

  • Phool

देसी Babool पर पीले रंग के गेंदनुमा फूल खिलते हैं। जबकि विलायती बबूल पर हल्के पीले लटकते हुए छोटे फूल खिलते हैं।

  • Aushadhiy upyogita

देसी Babool ke ped की छाल,पत्तियां और तने से निकलने वाले गोंद में  औषधिय गुणों  का समावेश है।जबकि विलायती बबूल का कोई औषधिय महत्व नहीं है।

  • Paryavaran par prabhav

देसी Babool ke ped  की पत्तियां मिट्टी में नाइट्रोजन की क्षमता का विकास करते हैं। यह वृक्ष मिट्टी की उर्वरक क्षमता को भी बढ़ता है ।जबकि विलायती बबूल काफी आक्रामक प्रजाति है। यह अपने आसपास की सभी वनस्पतियों का विनाश कर देता है। तथा भूमि को भी बंजर बनाने में सहयोग करता है।

  • Lakdi ka upyog

देसी Babool ke ped की लकड़ी मजबूत होती है। पश्चिमी राजस्थान में इससे फर्नीचर तथा बैल गाड़ियों के पहिए भी बनाए जाते थे।इसकी लकड़ी का उपयोग खेती में काम आने वाले औजारों को बनाने के उपयोग के लिए किया जाता था। जबकि विलायती बबूल केवल ईंधन के उपयोग में लिया जा सकता है।

  • Vikas par prabhav

देसी Babool ke ped pu का विकास नियंत्रित होता है। जबकि विलायती बबूल मिट्टी में एक बार लगा देने के बाद इसके विस्तार को रोकना कठिन है। यह प्रजाति जैव विविधता के लिए भी संकट का विषय है।

  • Pashuo par prabhav

देसी बबूल की पत्तियां और फलियां पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी और लाभकारी है।जबकि विलायती बबूल पशुओं के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।।

Desi babool ke  ped ke upyog

देसी Babool ke ped  का उपयोग आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए वर्णित है। इसकी तासीर ठंडी होती है। इसकी छाल पत्तियां व फल सभी का उपयोग अनेक रोगों की रोकथाम के लिए किया जाता है।

Babool ka ped की फलियाँ
Anek rogo ke upchar me in falliyo ka upyog kiya jata hai.
  • Faliyan

इसकी फलियों का चूर्ण जोड़ों में सूजन को कम करता है।शरीर के अंदर फैले संक्रमण, विषाक्तता को रोकने में प्रभावी है।तथा पेट की समस्याओं को ठीक करता है।Babool ke ped की फलियों का चूर्ण शरीर में कफ व पित्त का शमन करता है।  पुरुष संबंधी रोगों में भी इसके सेवन से लाभ होता है। इसकी फलियों का उपयोग भोजन में अचार बनाकर भी काम में लिया जाता है।

  • Gond

Babool ke ped  से निकला गोंद त्वचा से संबंधित रोगों में राहत देता  है।बबूल के गोंद में प्रोटीन,विटामिन और केल्शियम जैसे पोषक प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसका सेवन गले में जलन होने, सूखी खांसी होने तथा गले में रूखापन होने पर आराम पहुचाता है।

  • Chhal

 Babool ke ped की छाल का उपयोग मुख से संबंधित रोगों में लाभकारी है।इसकी छाल के चूर्ण का उपयोग से दांतों की समस्या, मसूड़े की सूजन आदि रोगों से निजात प्रदान करती है। आयुर्वेद में दंत मंजन के रूप में बबूल की टहनियों के उपयोग का वर्णन है। यह एक उत्तम दंत मंजन के रूप में कारगर है। यह घाव को भरती है, त्वचा विकारों को भी दूर करती है।

Babool ke upyog me ki jane wali savdhaniya

उपरलिखित प्रयोगों को उपयोग में लाने से पूर्व किसी प्रशिक्षित वैध की सलाह अवश्य लेवें।आयुर्वेदिक उपचार करते समय दवा की मात्रा को ध्यान में रखना आवश्यक है।

Babool ke ped ka dharmik mahatva

भारतीय संस्कृति में वृक्षों में भी देवताओं का निवास स्थान माना गया है।और मान्यता है कि वृक्षों की पूजा और उन्हें जल अर्पित करने से मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण होता है।

इसी प्रकार Babool ke ped में भी भगवान श्री विष्णु का निवास स्थान माना जाता है,ऐसी मान्यता है की यदि आप बबूल के पेड़ की सेवा करते है तो आपको सभी गृह दोषों से मुक्ति मिलती है।जिस घर के आंगन में यह वृक्ष होता है,वह धन धान्य से परिपूर्ण होता है।इसे काटना हिन्दु संस्कृति में महापाप माना गया है।

Nishkarsh

देसी बबूल भारत का मूल निवासी होने के कारण आवश्यक रूप से प्रकृति और पारिस्थितिकी के लिए लाभकारी है।Babool ke ped की पैदावार प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में कारगर है। मनुष्यों, पशुओं और मिट्टी सभी के लिए किसी प्रकार की कोई अड़चन पैदा नहीं करता। जबकि विलायती बबूल आक्रामक रूप से बढ़ता है।हालांकि इसकी लकड़ी से अनेक चूल्हे जलते हैं। परंतु जिस स्थान पर यह वृक्ष होता है। वहां जैव विविधता को खतरे के निशान पर ला देता है।देसी बबूल के पेड़ जैसी स्थानीय वनस्पति को संरक्षित कर के,इसके पौधारोपण को बढ़ावा देकर हम प्राकर्तिक संतुलन में योगदान दे सकते हैं।क्या आपने कभी देसी या विदेशी बबूल देखा है,अनुभव साझा कीजिएगा।

धन्यवाद!

 

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