कहते है कठोर परिस्थितियों में भी जो अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम है,अंत में जीत उसी की है।
कुछ ऐसी ही कठिन और विकट,प्राणों को सुखा देने वाली स्थितियों का निर्माण होता है,थार के रेगिस्तान में जहाँ भारत के मरुस्थलीय पौधे भी विषम दशाओं में हार न मानने को जैसे प्रतिबद्ध है।
क्या आपको पता है? थार का मरुस्थल विश्व में 17 वे नंबर का सबसे बड़ा रेगिस्तान है।और लगभग 700 से ज्यादा प्रकार की रेगिस्तानी वनस्पतियाँ यहाँ पर पाई जाती है। चलिए जानते है,ऐसा क्या विशेष है इन शुष्क पौधो में।
भारत के मरुस्थलीय पौधे कैसे जीते हैं?
शुष्क वातावरण में बढ़ने वाले ये पौधे प्रकृति की कलाकारी का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
खेजड़ी और बबूल जैसे पेड़ तो भयंकर गरमी में भी पोषण के लिए जमीन के भीतर 50 मीटर गहरे तक अपनी जड़े उतार देते हैं।
नागफनी अपने मोटे और मांसल तनों में जल का संग्रहण कर लेता है,और लम्बे समय तक जीवित रहता है।
भारत के रेगिस्तान में पाए जाने वाले इन पौधों की पत्तियाँ आकार में छोटी होती है। जो वाष्पीकरण की प्रक्रिया को धीमा करती है।
Cenchrus biflorus जिसे लोक भाषा में भर्भूटया भी कहते है,बरसात के मौसम में अपना जीवन चक्र जल्दी पूरा कर लेते हैं।
ये बीज के रूप में मिट्टी में रहते हैं।और अगले मौसम में फिर से उग जाते है, इस तरह से ये पौधे थार में लम्बे समय तक जीवंत रहते हैं। आइए जानते है इन मरुस्थलीय पौधों के नाम

भारत के 10 मरुस्थलीय पौधे कौनसे हैं?
आइये जानते है,इन अनूठी वनस्पतियों के बारें में जो कम पानी में और कठोर मौसम में भी अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं। इन सूखा सहन पौधों से शायद हम भी कुछ प्रेरणा ले सकें।
1 खेजड़ी (Prosopis cineraria)
- खेजड़ी के पेड़ को राजस्थान में दैवीय पेड़ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- थार के रेगिस्तान में ये पेड़ मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए जीवन देने वाला पेड़ साबित होता है।इसी कारण इसे राजस्थान के राज्य वृक्ष की मान्यता प्राप्त है।
- थार की विषम,विकट और शुष्क स्थितियों में भी ये पेड़ जमीन के नीचे 30 मीटर गहरे तक जड़ें पहुँचा कर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सक्षम है।
- तेज लू में जब पेड़ अपनी पत्तियाँ झाड़ देते हैं। उस समय भी ये पेड़ पत्तियों से हरा भरा रहता है। और रेगिस्तान में बकरियों ,ऊंट आदि जानवरों को पत्तियों का चारा उपलब्ध करवाता है।
- खेजड़ी के पेड़ पर लगने वाली फलियाँ जिन्हें सांगरी कहा जाता है। ग्रामीण इलाको में आय का अच्छा साधन भी बनती जा रही हैं।सांगरी को GI टैग मिलने के बाद देश विदेश में राजस्थानी सूखे मेवे की धूम मच गई है।
2 रोहिड़ा / रोहेड़ा (Tecomella undulata)
- रोहिड़ा बिग्नोंनियासी परिवार से समबंध रखने वाला मध्यम आकार का वृक्ष है। सर्दियों के मौसम में इस पेड़ पर सुंदर नारंगी,पीले और लाल रंग के आकर्षित करने वाले फूल लगते हैं।
- गणगौर के समय इन फूलों से इसर और पार्वती की पूजा की जाती है। जो कि राजस्थान के राज्य फूल भी माने जाते हैं।
- तपती दोपहरी में 50 डिग्री के तापमान में भी फलने वाला ये वृक्ष राजस्थान में कई जीवों का घर बन जाता है।
- रोहिड़ा के पेड़ को राजस्थान में डेजर्ट टीक,मारवाड़ टीक के नाम से भी जाना जाता है।इसकी लकड़ी से मजबूत फर्नीचर का निर्माण किया जाता है। इसकी अंधाधुन्द कटाई के कारण ही यह पेड़ अस्तित्व के खतरे पर है।
- यह पेड़ राजस्थान पाली, सीकर, बीकानेर, जैसलमेर,अजमेर,जयपुर आदि क्षेत्रों में पाया जाता है।
- पारम्परिक चिकित्सा में रोहिड़ा की छाल का उपयोग मूत्र विकारों और लीवर की समस्याओं और खांसी से निजात पाने के लिए किया जाता है।
- रोहिड़ा के फूलों को रंग बनाने के काम में भी लिया जाता है।रेगिस्तान में मिट्टी को मजबूती से स्थिर बनाएं रखने में इस पेड़ की महत्वपूर्ण भूमिका है।
3 बेर (Ziziphus mauritiana)
- यह एक झाड़ीनुमा पौधा है।जो की रैमिंसी परिवार का सदस्य है। इस पर मीठे,खट्टे, गोल आकार के फल लगते हैं। जिन्हें बेर कहा जाता है।राजस्थान में गांवों में समय बिताने वालों की बचपन की यादें तो बेर खाने से जुरूर जुड़ी होती है।
- इसके पौधे पर गोल,चमकने वाली पत्तियाँ लगी होती हैं। जो तेज़ काँटों से घिरी होती हैं।यह पौधा विशेषकर भारत और अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है।
- बेर के फल रसीले और स्वादिष्ट तो होते ही है, साथ ही स्वाथ्यवर्धक भी होते है। बेर के फलों में विटामिन C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही एंटीओक्सिडेंट और खनिज भी बहुतायत में पाये जाते हैं।
- गर्मियों में लू लगने पर इसका सेवन लाभकारी माना जाता है।इस पौधे की जड़ें भी मिट्टी में गहरे तक जाती हैं,और रेतीले इलाकों में मिट्टी का कटाव रोकने में सहायक है।

4 बुई का पौधा( Aerva javanica (Burm.f.) Juss. ex Schult. )
- भारत के मरुस्थलीय इलाकों में पाया जाने वाला बुई का पौधा जिसकी शाखाओं पर रुई का उत्पादन होता है।
- जिससे थार के प्रदेशों में ग्रामीण तकियों को और गद्दों को भरने के काम में लेते हैं। इसलिए इसे रेगिस्तानी कपास और तकिया घास भी बुलाया जाता है।
- बुई का पौधा अमेरेथेंसी परिवार से समबंध रखता है,और खास तौर पर राजस्थान में रेतीली,सूखाग्रस्त,और खेतो के आस पास की भूमि पर उगता है। किसानों के लिए तो यह सिर्फ खरपतवार है।
- यह एक मीटर की ऊंचाई तक बढ़ने वाली एक झाड़ी है। हरे पत्ते और ऊपर रेखाओं में बढ़ते हुए रुई जैसे फूल निकलते है। यह मूलतया अफ्रीका और म्यांमार का मूल निवासी है।
- रिसर्च गेट पर उपलब्ध एक शोध के अनुसार बुई के पौधे से अच्छे और मजबूत फाइबर का निर्माण किया जा सकता है।
- और भविष्य में इससे उत्पन्न फाइबर से उधोग के रूप में स्थापित किया जा सकता है। जो की प्रकृति को नुकसान भी नहीं पंहुचाता,पर्यावरण के अनुकूल भी है।

शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए स्पेस सेविंग गार्डनिंग आइडियाज

5 आक (Calotropis procera)
- मरुस्थलीय पौधों की श्रेणी में एक आक का पौधा अपना विशेष स्थान रखता है। राजस्थान में स्थानीय भाषा में इसे आकड़ो कहा जाता है।
- यह एपोसिनेसी परिवार से समबंधित पौधा है। यह तीन से 6 फीट तक की ऊंचाई तक बढ़ने वाला झाड़ीनुमा पौधा है।
- बड़ी और चौड़ी गद्देदार हरी पत्तियाँ और बैंगनी फूल इस पौधे की विशेषता है,भगवान शिव को आक के फूल समर्पित किये जाते हैं।
- मूलतया सड़कों के किनारे या खेतों की बाढ़ के बाहर ये पौधा आसानी से लगा दिख जाता है।
- इससे निकलने वाले दूध में विषाक्त पदार्थ होते है।इस वजह से जानवर भी इससे दूर रहते है।
- आकड़े के पौधे में कैरी जैसी आकृति के फल लगते हैं। जिनमे रेशे भरे होते हैं। वेस्ट इंडीज जैसे देशों में तो इन रेशों से तकिये भरे जाते हैं।
- इसलिए वे इन्हें पिलो कॉटन भी कहते हैं। राजस्थान में रुमा देवी फाउंडेशन भी आक के फाइबर से गर्म कपड़ों के निर्माण के कार्य पर अग्रसर है। जिनमे रजाई ,जैकेट आदि का निर्माण किया जाता है।
6 थोर(Euphorbia caducifolia)
- थोर यह पौधा देखने में कैक्टस जैसा लगता है। लेकिन यह कैक्टस से अलग हटकर होता है।थोर युफोर्बियासी परिवार का सदस्य है।
- और ज्यादातर भारत और पाकिस्तान में पाया जाता है। विशेषकर थार के रेगिस्तान और रेतीले इलाकों में इसे थोर या थोर डंडा भी कहते हैं।
- अभी कुछ दिन पहले कुम्भलगढ़ की यात्रा के दौरान अरावली की पहाड़ियों पर थोर के पौधे बहुतायत में देखने को मिले।
- झाड़ीनुमा,मोटे और भरे हुए तने वाले पौधे जिनपर कांटे भी लगे थे।छोटी और बारीक़ पत्तियाँ और ऊंचाई में कुछ छोटे और कुछ बहुत ही लम्बे थे।
- इस पौधे की टहनियों से दूध जैसा गाढ़ा पदार्थ निकलता है।जो कि जहरीला होता है,लेकिन इसका उपयोग प्राचीनकाल से भारत की जनजातियाँ लोक चिकित्सा में कर रही हैं।
- जैसे चोट के घाव को भरना,त्वचा से सम्बंधित रोगों में,पाचन की समस्याओं में भी आयुर्वेद में इस पौधे को रक्त स्नुही बुलाया जाता है।
- थार के रेगिस्तानी इलाके में कुछ किसान जानवरों से अपनी फसल को बचाने के लिए थोर के झाड़ी की बाढ़ बना देते हैं,जो की मिट्टी के कटाव को रोकने और पशुओं को खेतों में आने से रोकने का एक पर्यावर्णीय तरीका है।
धरती पर स्वर्ग से उतरा वृक्ष पारिजात

7 कुमट (Acacia senegal)
- थार के सूखाग्रस्त रहने वाले क्षेत्रों में एक और लोकप्रिय वनस्पति है, कुमुट का पेड़। जिसे लोकभाषा में कुमठी भी कहा जाता है।
- यह भारत,पाकिस्तान,ओमान और अफ्रीका में पाया जाने वाला पेड़ है। राजस्थान में इसकी फली से निकलने वाले बीजों से पारम्परिक पंचकूटे की सब्जी बनायी जाती है।
- यह वृक्ष भी फलीदार परिवार से समबंध रखता है। यह एक कांटेदार वृक्ष है, जिसमें फूल सफ़ेद रंग के लगते है।जैसे बोतल साफ करने का ब्रश होता है कुछ वैसा ही गुच्छे में सफ़ेद फूल लगते हैं।
- इस पेड़ के अन्य प्रचलित नाम गम अरेबिक,गम अकेसिया और सूडान गम अरेबिक है।
- इस पेड़ से निकलने वाले गोंद का उपयोग कोल्ड ड्रिंक्स को बनाने में,रंग को बनाने में,सील के लिए गोंद को बनाने में,मिठाइयों और कैंडीज को बनाने में भी किया जाता है।
8 बबूल (Vachellia nilotica)
- राजस्थान के तपते धोरों की वनस्पति की बात हो,और बबूल का नाम न आए ऐसा तो संभव नहीं।
- बबूल जिसे(Vachellia nilotica) भी कहा जाता है। एक सर्वगुण संपन्न पेड़ है, जिसकी पत्तियाँ,छाल,बीज,लकड़ी सभी का औषधीय और आर्थिक महत्त्व भी है।
- बबूल भारत और अफ्रीका से सम्बंधित वृक्ष है।नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के अनुसार इस पेड़ में लगभग 150 से अधिक रसायनिक तत्व पाये गए है।
- जो कि सूजन को कम करने में,दर्द में आराम देने में,बुखार को समाप्त करने में,रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में,कीटाणुओं का मारने में प्रभावी रूप से कम करते है।
- बबूल निलोटिका के बीजों में प्रोटीन,फाइबर,मेग्निसियम,पोटेशियम,फास्फोरस और वसा जैसे अनेकों पोषक तत्वों का भंडार है।आयुर्वेद में इसके बीजों को हड्डियों को मजबूत करने के लिए विशेष रूप से मान्यता दी जाती है।
- पेड़ से निकलने वाले गोंद से इंक,दवाइयां,गोंद आदि बनाये जाते हैं। स्थानीय लोग इसकी लकड़ी से फर्नीचर,औजारों के हत्थे ,और जहाजों को बनाने में उपयोग किया करते थे।
- थार के रेगिस्तान में ये पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक है।ये पेड़ विकट गर्मी को सहन करता है। इसकी पत्तियों से सेवन से पशुओं का स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।

9 लेसवा/गूंदा (Cordia myxa)
- गूंदे का अचार राजस्थान में बड़ा लोकप्रिय व्यंजन है।बाजरे की रोटी,बाटी के साथ मुझे तो बड़ा स्वादिष्ट लगता है।
- राजस्थान के अंचल में पाए जाने वाले इस पेड़ से बहुत लसदार फल उगते हैं।जिनका अचार और सब्जी बनाने में उपयोग किया जाता है।
- इस पेड़ का नाम है,लेसवा या लसोड़ा,भारतीय बैरी इसे ग्लू बैरी और असीरियन प्लम भी कहते हैं।
- यह पेड़ बोरेजिनेसी परिवार से सम्बंधित है।और मूलतया एशिया,अफ्रीका और गर्म क्षेत्रों में आसानी से उगने वाला पेड़ है। ऊंचाई में ये वृक्ष 10 से 20 फीट तक बढ़ जाता है।
- लसोड़ा के पेड़ पर लगने वाले गोल लसदार फल में गूदा भरा होता है।और यह सिर्फ मई से जून के समय बाज़ार में उपलब्ध होता है।
- इसके फलों में कब्ज को दूर करने,रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने,और कई प्रकार के इन्फेक्शन से बचाने में सहायक गुण होते हैं।
- इसकी लकड़ी का उपयोग इंधन के रूप में,गोंद बनाने के लिए किया जाता है। और पत्तियाँ पालतू पशुओं के चारे के काम आती हैं।

10 सेवन घास (Lasiurus sindicus)
- सेवन घास जिसे लेसियुरस सिंडीकस नाम से जाना जाता है।थार की शुष्क परिस्थितियों में जिस तरह ये वनस्पति अनुकूलन करती है। इस कारण इसे रेगिस्तान का राजा भी कहा जाता है।
- जिन क्षेत्रों में वार्षिक 250 मिमी से भी कम बारिश होती है। वहां भी यह घास आसानी से पनप जाती है।
- और 20 साल तक जीवित रह सकती है। मूलतया इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
- सेवन घास एशिया के सूखे क्षेत्रों,पूर्वी अफ्रीका और उत्तरी अफ्रीका में पायी जाती है।राजस्थान में जैसलमेर,बाढ़मेर,और बीकानेर में यह घास मिलती है।भारत के अलावा पाकिस्तान में भी इसका प्रसार है।
- रेगिस्तान जैसे रूखे और शुष्क प्रदेशों में भेड़,बकरियों,ऊँटों को यह भोजन प्रदान करती है,मरुस्थल में चलने वाली आंधियों में मिट्टी को जमाये रखती है।रेगिस्तानी टीलों की रक्षक है, यह सेवन घास।
सामान्यतया पूछे जाने वाले सवाल
Q थार में कौन-कौन से पेड़ पाए जाते हैं ?
थार के रेगिस्तान में खेजड़ी(Prosopis cineraria),बबूल(Vachellia nilotica),थोर (Euphorbia caducifolia),सेवन घास (Lasiurus sindicus) जैसी वनस्पति विशेष रूप से पायी जाती हैं,ये सूखे में भी आसानी से जीवित रहने वाले पौधे हैं
Q थार के पौधे कठोर जलवायु में कैसे जीवित रहते हैं?
इन पौधों की बनावट इसमें सहयोग करती हैं
इन पौधों की पत्तियाँ छोटी होती है और कांटे भी होते है,जिससे पानी कम वाष्पित होता है,जड़ें मिट्टी में गहरे तक जाती है जिससे पानी की आवश्यकता पूरी हो जाती है,थोर जैसे पौधे अपने तनों में पानी संग्रहित करके रखते हैं,और कुछ पौधे बीजों की अवस्था में रहते हैं,जैसे ही बारिश होती है फिर से उग जाते हैं
Q खेजड़ी को इतना महत्वपूर्ण स्थान क्यों प्राप्त है?
खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है,इस पेड़ की पत्तियाँ पशुओं और मिट्टी के लिए भी पोषण का कार्य करती है,थार के सूखे इलाके में इसकी फलियों से लोग सब्जी बना कर खाते हैं,इसलिए इसे रेगिस्तान का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है
निष्कर्ष
जब हम पेड़ पौधों की देखभाल करते है तो भी जाने कितनी समस्याओं से उनकी रक्षा करनी पड़ती है।लेकिन विचित्र बात है,भारत के मरुस्थलीय पौधे कितनी सहनशीलता और मजबूती से कठिन जलवायु में भी अपना अस्तित्व बनाये हुए है।और दूसरे जीवों के जीवन में भी सहभागिता प्रदान करते है,विपरीत परिस्थियों में भी अनुकूलन हमें इन पौधों से सीखना चाहिए।जानकारी अच्छी लगे तो दूसरों से भी साझा किजीए।
सन्दर्भ
थार के पौधों के बारे में अधिक जानकारी यहाँ से प्राप्त करें https://www.sahapedia.org/the-plants-of-the-thar-desert
