Friday, December 19, 2025
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विलायती बबूल का ग्रामीण समुदाय पर प्रभाव

विलायती बबूल जैसा जिद्दी और अड़ियल पेड़ शायद ही अपने देखा होगा,आप लाख कोशिश कीजिए इससे पीछा छुड़ाने की,मुझे पूरी उम्मीद है ये पौधा आपको कांटे की टक्कर देगा।

छोटी सी दिखने वाली झाड़ी मिट्टी के नीचे कितनी गहरी है,आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते!

विलायती बबूल मूल रूप से मेक्सिको और दक्षिणी अमेरिका का रहवासी पेड़ है।वनस्पतियों में इसे Prosopis juliflora के नाम से जाना जाता है।

लेकिन भारत के ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगो को ये पेड़ बहुत काम में आने वाला लगा, जब तक की वैज्ञानिक रिसर्च ने इसे स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों लिए खतरनाक नहीं सिद्ध कर दिया। 

इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग गांवों में लम्बे समय तक ईंधन के रूप में किया जाता रहा है। 

स्थानीय प्रजातियों के लिए खतरनाक होने के बावजूद यह झाड़ीनुमा पेड़ गांवों में पशुओं के चारे और चूल्हा जलाने के लिए तो काम तो आता ही है,इसमें कोई दो राय नहीं है। 

भारत में विलायती बबूल क्यों फैला?

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जोधपुर में पोश एरिया में फैला बबूल का जंगल

भारत में प्रोसिपिस जूलीफ्लोरा की एंट्री हुई थी 1876 में,ब्रिटिश लेफ्टीनेंट आर.एच.बेंडोम ने दक्षिणी राज्यों के शुष्क क्षेत्रों में लगवाने के लिए इसके बीज मंगवाए थे,ये बीज जमैका से लाये गए थे। 

भारत में राजस्थान ने 1899 से 1900 के बीच समय समय पर लम्बे समय तक अकाल की मार झेली,राजे रजवाड़ों को भी प्रजा की चिंता हुई, और उन्होंने करों में जनता को कुछ राहत भी दी। 

लेकिन आखिर जनता करे भी क्या,ना कुछ उगाने को,न कुछ खाने को इस गंभीर समस्या के निवारण के लिए राज्य में जगह जगह भिन्न भिन्न प्रकार के देसी पेड़ों के बीज बिखेरे गए। कैर,कंकेडा,खेजड़ी.कुमठी लेकिन एक बीज तक अंकुरित न हो पाया। 

विलायती बबूल को अंग्रेजो द्वारा सुझाया गया था।दिल्ली में फारेस्ट विकसित करने के लिए, लेकिन बाद में मारवाड़ के जंगलात महकमे ने इसे राजस्थान में लगाने का निर्णय लिया। 

1930 में राजस्थान के सूखे इलाकों में इसके बीज लगवाए गए,और इसके बढ़ते विकास और जीवनयापन के जरुरी हिस्सा बनने के कारण इसे रॉयल ट्री का भी दर्जा दिया गया, यह 1940 में हुआ। 

उसके बाद जब मारवाड़ में लूणी नदी के किनारे,जंगल,खेतो के आस पास इसके बीज बिखेरे गए, तो अकाल में भी इसकी जीवटता की क्षमता देखकर सभी दंग रह गए। 

जहाँ सभी देसी पौधे अपना दम तोड़ देते थे,विदेशी बबूल कहीं भी आसानी से उग जाता। पहाड़,जमीन सभी को इस पौधे ने पूरी तरह ढक दिया था। 

मारवाड़ के राजाओं ने भी इसके बीज अकाल के दिनों में राजस्थान में बिखेरे।दिन ब दिन यह विदेशी पेड़ राजस्थान के जनमानस की मूलभूत जरूरतों का आधार बनता चला गया। 

इसकी लकड़ियों से घर का चूल्हा जलने लगा,घर के छप्पर बनाने में इसकी मजबूत लकड़ियाँ काम आई,खेती के औजार,घर के खिड़कियाँ,दरवाजे बनाने के काम में आने से यह बबूल ग्रामीण समुदाय को बहुत प्रभावित किया,और तो और पशुओं की भी चारे भोजन की व्यवस्था भी आसानी से होने लगी। 

लेकिन सरकारों और गाँव की लोगों की चेतना जागृत हुई,जब उन्होंने देखा इस पेड़ की वजह से आस पास सभी पेड़ पौधों की प्रजातियाँ समाप्त होने लगी।

विलायती बबूल जमीन में बहुत गहरे तक,50 मीटर से भी ज्यादा अपनी जड़े उतार देता है। जिससे विशेषकर शुष्क क्षत्रों में जल की समस्या का संकट भी गहराया है।  

ये एलियन ट्री ऊपर एक छतरीनुमा आवरण बना लेता है।जिसके नीचे घास तक न उग पाए,तीखे कांटे,लम्बी डालियाँ,यहाँ तक की जमीन पर पसर कर भी यह जीवित रह जाता है।अलग अलग आकार में ये पेड़ दिखाई देता है।

जहाँ कोई पेड़ पौधा नहीं विलायती बबूल जरुर मिलेगा।अभी कुछ ही समय हुआ है, बरसात के मौसम को गए उस मौसम में सड़क के किनारे यहाँ जोधपुर में बहुत से पौधे अंकुरित हुए।

यहाँ तक की मोरिंगा भी,कुछ बेले भी लेकिन जीवित रहा तो सिर्फ बबूल,इसके काँटों ने जानवरों से इसकी रक्षा की वो भी इसे नुकसान न पंहुचा पाए। ऐसा लगता है,जैसे चिरकाल तक जीने का वरदान इस पेड़ को प्राप्त है।  

जागरण में छपी न्यूज़ के अनुसार दिल्ली और उसके आस पास के इलाकों में ये पेड़ लगभग 500 प्रजातियों  के पेड़ पौधों को लील चुका है। 

प्रोसेपिस जूलीफ्लोरा न सिर्फ स्थानीय पेड़ पौधों के लिए खतरा बना, बल्कि अनेकों पशु पक्षियों के लिए भी संतुलन बिगाड़ने वाला वृक्ष साबित हुआ। 

IUCN ने प्रोसेपिस जुलिफ्लोरा को विश्व की सबसे खतरनाक 100 प्रजातियों के पेड़ों की श्रेणी में रखा है। 

विलायती बबूल का सामाजिक व आर्थिक प्रभाव(रियल केस स्टडीज)

गुजरात का बन्नी क्षेत्र 

गुजरात के बन्नी क्षेत्र में कच्छ के रण का विस्तार को रोकने के लिए,विलायती बबूल के पौधे रोप गए थे,जो मिट्टी में नमक की मात्रा होने के बावजूद भी आसानी से पनप गए।

और तो और विलायती बबूल ने केवल 20 ही सालों में रोपी गई जमीन के दुगुने हिस्से का अतिक्रमण कर लिया जो अब वन विभाग का सर दर्द बना हुआ है। 

शहरों में भी बबूल में जगह जगह अपनी धाक जमाई हुई है

इसके कंटीले आवरण से पशुओं के चरने की जगह में कमी आ गई है।रास्तों मे बाढ़ सी बना देता है ये पेड़,आने जाने के रास्तों तक को बाधित करता है।लोगों के लिए पशुओं को रखना और इनके चारे की व्यवस्था एक समस्या बना हुआ है। 

दक्षिण भारत(तमिलनाडु)सामुदायिक रिपोर्ट 

तमिलनाडु में जब विलायती बबूल को लगाया गया,तो वहां भी यह पेड़ ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों का पसंदीदा बन गया।

चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ मिल जाती,पशुओं का चारा भी आसानी से उपलब्ध होने लगा। 

और लकड़ियाँ बेच कर गाँव के लोगों का गुज़ारा भी आराम से हो जाता था। 

लेकिन ये एलियन ट्री मुश्किल तब बना,जब ये सारी जमीन पर छाने लगा।जैसे उसी का साम्राज्य हो।

इसकी छाँव के तले तो घास तक नहीं उगती थी। जानवर क्या चरते,विलायती बबूल ने कई रास्तों को जाम करने का कम किया लोगों को और पशुओं को एक सीमा में बांध के रख दिया। 

तमिलनाडू स्टेट लेंड रिसर्च बोर्ड की इस रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे इस पौधे के अत्यधिक बढ़ाव को रोका या कम किया जा सकता है।

  • जिसमे से एक था,कि जब ये पौधे छोटे हों तभी इनका प्रसार रोका जाना चाहिए। 
  • काटी गई झाडियों को बेकार न फेंके,बल्कि कोयला बनाने और ईंधन के रूप में उपयोग करने पर पैसे भी कमाए जा सकते हैं। 
  • प्रोसेपिस जूलीफ्लोरा को काटने के साथ ही जगह खाली न छोड़े,बल्कि वहां के स्थानीय पेड़ लगाएं।इसे उन्होंने रिप्लेसमेंट प्लांटिंग कहा जो इसकी अवांछित बढ़त को रोकने में सहायक है। 
बबूल-का-मकड़ी-जैसा-फैला-जाल
बबूल झाड़ी बेल हर तरह से जमीन पर आवरण बना जगह को घेर लेता है

निष्कर्ष 

हालाँकि विलायती बबूल भारत में विषमताओं की स्थिति में लाया गया था,और चाहे कुछ भी कहिए विपरीत और अकाल जैसी मुश्किल और जीवन को हर लेने वाली परिस्थितियों में इस विदेशी पेड़ ने भारत के ग्रामीण लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है।उनके घर की रोजमर्रा जरूरतों का साथी बना है। लेकिन इसमें भी दो राय नहीं है,कि प्रोसेपिस जूलीफ्लोरा भारत ही नहीं,बल्कि कई देशों की स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों के जीवन को बचाने में मुश्किल खड़ी कर रहा है।आप के पास इस पेड़ से जुड़ी कहानियाँ या अनुभव हो तो जरुर साझा कीजिएगा। 

सामान्तया पूछे जाने वाले प्रश्न

विलायती बबूल (Prosopis juliflora) नुकसानदायक क्यों माना जाता है?

क्योकिं यह पेड़ बहुत तेजी से फैलता है खाली पड़ी जमीन को पूरी तरह ढक लेता है ये पेड़ स्थानीय वृक्षों के जीवन के लिए खतरा बन जाता है रास्ते रोक देता है गांवों में खेती की जमीन का नुकसान होता है 

क्या यह पेड़ किसी काम का नहीं?

ऐसा नहीं है गांवों में ईंधन के लिए लकड़ी,कोयला बनाया जा सकता है और छोटी फलियाँ का पाउडर खाने के बिस्कुट,कॉफ़ी पाउडर बनाने के काम आता है लेकिन इसके दीर्घकालीन परिणाम खतरनाक है 

क्या Prosopis juliflora पूरी तरह से हटाया जा सकता है?

पूरी तरह इस पेड़ को हटाना कठिन है जब ये पेड़ छोटा होता है इसे तभी हटाया जा सकता है बाद में बीजों के सहारे आसानी से बढ़ जाता है लेकिन हटाने के साथ ही स्थानीय पेड़ो को लगा कर इसे प्रसार को रोका जा सकता है

Prakriti ke sathi
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