क्या आप जानते है? एक ऐसे पेड़ के बारे में जो स्वयं भीषण ताप और धूप सह कर भी दूसरों को छाया प्रदान करता है।राजस्थान में जेठ (जून का महिना) की दोपहर में लू के थपेड़े सहन करनें के बाद भी ये पेड़ हरा भरा रहता है, और कठिन परिस्थितियों में जीवित रहनें और अपना अस्तित्व बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
शायद इसीलिए राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ को पूजा जाता है।राजस्थान के लोगों ने अपने निजी अनुभवों से समय दर समय खेजड़ी की पर्यावर्णीय महत्ता को स्वीकार किया है। आइये जानते है ऐसे ही दैवीय पेड़ शमी के बारें में।
Khejri ke ped ke vibhinn nam or parichay
खेजड़ी को शमी,अग्निगर्भा,सुभद्रा आदि नामों से वेदों में अलंकारित किया गया है।अंग्रेजी में इस पेड़ को प्रोसेपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है।यह पेड़ राजस्थान के शेखावटी व नागौर में सर्वाधिक पाये जातें हैं।खेजड़ी का पेड़ जांट/जांटी व सांगरी के नाम से भी जाना जाता है।
खेजड़ी को राजस्थान का गौरव,थार का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।राजस्थान में हिन्दी के कवि इस पेड़ की महिमा का बखान करते नहीं थकते ।जी हाँ!
आइए जानते है इस पेड़ में ऐसा क्या विलक्षण और विशेष है।
Khejri ke ped ki visheshtaye
सूखा प्रतिरोधी
खेजड़ी का पेड़ सूखा प्रतिरोधी वृक्ष है जो कम पानी प्राप्त होनें पर भी जीवित रहता है।इसकी जड़े मिट्टी में गहरी जा कर नमी अवशोषित कर लेती हैं।इसी कारण भयंकर गर्मी में भी यह वृक्ष लहलहाता रहता है।
चारे का स्त्रोत
खेजड़ी की पत्तियों को “लूंग” कहा जाता है जो पशुधन के चारे के रूप में काम आती हैं।राजस्थान में उँट तथा बकरियाँ खेजड़ी के पत्तों से पोषण प्राप्त करते हैं।
मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना
राजस्थान में खेतों में अनेक खेजड़ी के पेड़ पाए जाते हैं,जब इनके पत्ते खेतों में गिरते हैं तो वे मिट्टी की भी उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं।खेजड़ी मिट्टी में नाईट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है,जिससे आस पास की फ़सलें भी बेहतर होती हैं।
सांगरी (लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकने वाला खाद्य पदार्थ)
खेजड़ी के पेड़ पर लगने वाले फल को “सांगरी“कहते है।रेगिस्तानी प्रदेशों में जहां सूखा रहता है जल्दी से सब्जियां उप्लब्ध नहीं हो पाती वहां सांगरी को सुखा कर संरक्षित कर लिया जाता है।और लम्बे समय तक इस सब्जी का उपयोग खाने के लिए किया जाता है।इस सूखी सब्जी का देश से बाहर भी निर्यात किया जाता है।यह पूर्णतया प्राकर्तिक सब्जी है जो बिना केमिकल या यूरिया के तैयार होती है।
लकड़ी और ईंधन
खेजड़ी के पेड़ की टहनियों से ग्रामीण व्यक्ति चूल्हा जलाने का काम लेते हैं।इसकी लकड़ी से तैयार फर्नीचर भी मजबूत होता है।इसके तने से पुराने समय में किसान हल बनाया करते थें।
जल संरक्षण
खेजड़ी वृक्ष की जड़े धरती में गहराई तक जाती हैं और जल को संरक्षित करने में सहायक होती हैं,जो की रेगिस्तानी और सूखाग्रस्त इलाकों के लिए वरदान साबित होती हैं।
कठिन परिस्थितियों में जीवित रहना
खेजड़ी का पेड़ बिना पानी,भीषण गर्मी में भी रेगिस्तान के धोरों में डटा हुआ रहता है पशुओं और लोगों के लिए छाया व भोजन उप्लब्ध करवाता है,इसीलिए इस पेड़ को राजस्थान का आदर्श पेड़ कहा जाता है।
Tharshobha Khejri ka naya rupantaran
बीकानेर शुष्क अनुसंधान केंद्र द्वारा खेजड़ी के पेड़ की एक उन्नत और नयी किस्म तैयार की गई है ।इस पेड़ को नाम दिया गया है “थारशोभा“।इस पेड़ में कांटे नहीं होते।क्षेत्रीय खेजड़ी कांटो से भरी होती है।पेड़ लगने के 2 साल बाद ही पेड़ से फल “सांगरी”प्राप्त किया जा सकता है।इस पेड़ की ऊंचाई 8 फीट के लगभग होती है।
इस प्रकार थारशोभा के रोपण से छोटे आकार के वृक्ष,बिना कांटो के,अच्छी चारे की उपज और बेहतरीन गुणवत्ता वाले फल “सांगरी“को कम समय में प्राप्त किया जा सकता है।अत: इसके प्रति जागरुकता फैलाना आवश्यक है।
राजस्थान का राज्य वृक्ष
Khejri ka ped or isse judi kuch rochak jankariya
1899 में राजस्थान में भीषण अकाल पड़ा था,जिसे “छपनिया अकाल”के नाम से भी जाना जाता है,उस समय जब ग्रामीण लोगों के पास खानें को कुछ भी नहीं था,खेजड़ी के तने के छिलकों को खा कर लोगों ने अपना जीवन सुरक्षित किया।
खेजड़ी का पेड़ विश्नोई समुदाय के लिए विशेष पूजनीय है वे इसे काटते नहीं हैं ना काटने देते हैं।1787 में राजस्थान में खेजड़ली गाँव की अमृता देवी विश्नोई नें खेजड़ी के पेड़ो को काटने से बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया था उनके साथ 363 लोगों ने भी इस आन्दोलन में खेजड़ी की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए
खेजड़ी की सांस्कृतिक व पर्यावरणीय महत्ता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने 31अक्टूबर 1983 को खेजड़ी को राज्य वृक्ष का सम्मान दिया।
राजस्थान से लूणी पंचायत समिति के गाँव सर में खेजड़ी के फल सांगरी को मारवाड़ का मेवा कहा जाता है। इस वर्ष इस गाँव में खेजड़ी के पेड़ो पर सांगरी की बहार आई हुई है,गाँव के सभी लोग अति उत्साहित है।खेजड़ी के पेड़ गाँव के लोगो को आर्थिक और स्वास्थ्य की की दृष्टि से मजबूती प्रदान कर रहे है।इन पेड़ो पर लगने वाली सांगरी मनुष्यों और पशुओ के लिए भी अति गुणकारी है ।यह बाज़ार में सूखी होने पर 1000 रूपये किलो और गीली सांगरी करीब 400 रूपये किलो तक बिकती है ।खेजड़ी के पेड़ की छत्रछाया में यह गाँव आत्मनिर्भर बन गया है ।
जोधपुर में काजरी संसथान ने खेजड़ी के पेड़ का रूपांतरण किया है।और एक नयी किस्म तैयार की है जिसे थारशोभा नाम दिया गया है ,यह पेड़ काँटों रहित होता है। तथा इस पर सांगरी का उत्पादन भी 4 वर्ष में ही शुरू हो जाता है। कलमी खेजड़ी का यह पौधा जब पेड़ बन जाता है। तो एक पेड़ से ही करीब 5 से 6 किलो सांगरी की पैदावार ली जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह शुभ समाचार है ।
खेजड़ी के फल सांगरी को GI टैग मिल गया है। यह राजस्थान के लिए गौरव और सम्मान का पल है। सांगरी को अब वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी जिस पर सिर्फ राजस्थान का अधिकार होगा।
इससे राजस्थान के किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ होगा।
Khejri ka ped kis devta se sambandhit hai ?
राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ को पूजा व विधानों में भी सम्मिलित किया जाता है।प्राचीन काल में इसकी लकड़ियों से यज्ञ की समिधा बनाने की परम्परा रही है। यज्ञ की अग्नि की ज्योति को शमी और पीपल के पेड़ की लकड़ियों के घर्षण से जलाया जाता था।नवरात्रि में शमी की पत्तियों से दुर्गा पूजा की जाती है।भगवान शिव को भी शमी की पत्तियाँ अर्पित की जाती हैं ,गणेश पूजन में भी शमी की पत्तियाँ चढ़ाने की परम्परा है।
राजस्थान में क्षेत्रीय देवताओं गोगाजी,पाबूजी,रामदेवजी,तेजाजी,शीतला माता आदि के मन्दिर खेजड़ी के पेड़ के नीचे ही होते हैं,
महाभारत महाकाव्य में भी शमी का उल्लेख मिलता है जब पांडवों को अज्ञातवास मिला, तो उन्होने गाण्डिव सहित सभी अस्त्र शस्त्र शमी के तने में छिपा दिए थे।
रामायण के अनुसार पंचवटी जहाँ श्री राम और जानकी तथा लक्ष्मण ने वनवास बिताया, वहाँ खेजड़ी के पेड़ भी अस्तित्व में थे और लक्ष्मण ने अपने भैया और भाभी की पर्णकुटी की आधारशिला शमी के पेड़ से ही रखी थी।
Nishkarsh
खेजड़ी का पेड़ रेगिस्तानी इलाकों में रीढ़ की हड्डी साबित होता है।अपनी पर्यावरणीय विशेषताओं के कारण यह पेड़ अमूल्य है इसलिए इसका संरक्षण आवश्यक है।बीकानेर शुष्क अनुसंधान केंद्र ने भी खेजड़ी की एक उन्नत किस्म तैयार की है जिसमें कांटे नहीं होते और फल की गुणवत्ता भी उत्तम है।किसानों के लिए व्यवसायिक दृष्टि से भी खेजड़ी लाभदायक है।अत:इसे अधिक से अधिक संरक्षण की आवश्यकता है।क्या आपने खेजड़ी का पेड़ देखा है?कोई विशेष अनुभव और सूचना हो अवश्य साझा कीजिएगा ।
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