Khejri ka ped|थार का कल्पवृक्ष
Khejri ke ped ke vibhinn nam or parichay
Khejri ke ped ki visheshtaye
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सूखा प्रतिरोधी
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चारे का स्त्रोत
खेजड़ी की पत्तियों को “लूंग” कहा जाता है जो पशुधन के चारे के रूप में काम आती हैं।राजस्थान में उँट तथा बकरियाँ खेजड़ी के पत्तों से पोषण प्राप्त करते हैं।
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मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना
राजस्थान में खेतों में अनेक खेजड़ी के पेड़ पाए जाते हैं,जब इनके पत्ते खेतों में गिरते हैं तो वे मिट्टी की भी उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं।खेजड़ी मिट्टी में नाईट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है,जिससे आस पास की फ़सलें भी बेहतर होती हैं।
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सांगरी (लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकने वाला खाद्य पदार्थ)
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लकड़ी और ईंधन
खेजड़ी के पेड़ की टहनियों से ग्रामीण व्यक्ति चूल्हा जलाने का काम लेते हैं।इसकी लकड़ी से तैयार फर्नीचर भी मजबूत होता है।इसके तने से पुराने समय में किसान हल बनाया करते थें।
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जल संरक्षण
खेजड़ी वृक्ष की जड़े धरती में गहराई तक जाती हैं और जल को संरक्षित करने में सहायक होती हैं,जो की रेगिस्तानी और सूखाग्रस्त इलाकों के लिए वरदान साबित होती हैं।
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कठिन परिस्थितियों में जीवित रहना
खेजड़ी का पेड़ बिना पानी,भीषण गर्मी में भी रेगिस्तान के धोरों में डटा हुआ रहता है पशुओं और लोगों के लिए छाया व भोजन उप्लब्ध करवाता है,इसीलिए इस पेड़ को राजस्थान का आदर्श पेड़ कहा जाता है।
सीता अशोक एक अद्भुत वृक्ष से परिचित होंगे आप
Tharshobha Khejri ka naya rupantaran
Khejri ka ped or isse judi kuch rochak jankariya
1899 में राजस्थान में भीषण अकाल पड़ा था,जिसे “छपनिया अकाल”के नाम से भी जाना जाता है,उस समय जब ग्रामीण लोगों के पास खानें को कुछ भी नहीं था,खेजड़ी के तने के छिलकों को खा कर लोगों ने अपना जीवन सुरक्षित किया।
खेजड़ी का पेड़ विश्नोई समुदाय के लिए विशेष पूजनीय है वे इसे काटते नहीं हैं ना काटने देते हैं।1787 में राजस्थान में खेजड़ली गाँव की अमृता देवी विश्नोई नें खेजड़ी के पेड़ो को काटने से बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया था उनके साथ 363 लोगों ने भी इस आन्दोलन में खेजड़ी की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए
खेजड़ी की सांस्कृतिक व पर्यावरणीय महत्ता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने 31अक्टूबर 1983 को खेजड़ी को राज्य वृक्ष का सम्मान दिया।
राजस्थान से लूणी पंचायत समिति के गाँव सर में खेजड़ी के फल सांगरी को मारवाड़ का मेवा कहा जाता है। इस वर्ष इस गाँव में खेजड़ी के पेड़ो पर सांगरी की बहार आई हुई है,गाँव के सभी लोग अति उत्साहित है।खेजड़ी के पेड़ गाँव के लोगो को आर्थिक और स्वास्थ्य की की दृष्टि से मजबूती प्रदान कर रहे है।इन पेड़ो पर लगने वाली सांगरी मनुष्यों और पशुओ के लिए भी अति गुणकारी है ।यह बाज़ार में सूखी होने पर 1000 रूपये किलो और गीली सांगरी करीब 400 रूपये किलो तक बिकती है ।खेजड़ी के पेड़ की छत्रछाया में यह गाँव आत्मनिर्भर बन गया है ।
जोधपुर में काजरी संसथान ने खेजड़ी के पेड़ का रूपांतरण किया है।और एक नयी किस्म तैयार की है जिसे थारशोभा नाम दिया गया है ,यह पेड़ काँटों रहित होता है। तथा इस पर सांगरी का उत्पादन भी 4 वर्ष में ही शुरू हो जाता है। कलमी खेजड़ी का यह पौधा जब पेड़ बन जाता है। तो एक पेड़ से ही करीब 5 से 6 किलो सांगरी की पैदावार ली जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह शुभ समाचार है ।
खेजड़ी के फल सांगरी को GI टैग मिल गया है। यह राजस्थान के लिए गौरव और सम्मान का पल है। सांगरी को अब वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी जिस पर सिर्फ राजस्थान का अधिकार होगा।
इससे राजस्थान के किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ होगा।
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Khejri ka ped kis devta se sambandhit hai ?
Nishkarsh
Reference
Khejri ka ped –https://krishi.icar.gov.in/jspui/bitstream/123456789/18716/1/Khejri%20in%20the%20Indian%20desert.pdf